Environment Studies -Part-6
June 18, 2021

- सर्वप्रथम ‘बायोडायवर्सिटी’ शब्द का प्रयोग किया था – वाल्टर जी. रोसेन ने
- जैव-विविधता जिन माध्यम/माध्यमों द्वारा मानव अस्तित्व का आधार बनी हुई है –मृदा निर्माण, मृदा अपरदन की रोकथाम, अपशिष्ट का पुन:चक्रण, शस्य परागण
- संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 2011-20 के लिए दशक निर्दिष्ट किया है –जैव-विविधता दशक
- पारिस्थितक तंत्र की जैव-विविधता की बढ़ोतरी के लिए उत्तरदायी नहीं है – पोषण स्तरों की कम संख्या
- पारिस्थितिकी तंत्र होता है – एक गतिकीय तंत्र
- हिमालय पर्वतप्रदेश जाति विविधता की दृष्टि से अत्यन्त संमृद्ध हैं। इस समृद्धि के लिए जो कारण सबसे उपयुक्त है, वह है – यह विभिन्न जीव-भौगोलिक क्षेत्रोंका संगम है
- भारतीय संसद द्वारा जैव-विविधता अधिनियम पारित किया गया – दिसंबर 2002 में
- ‘भारतीय राष्ट्रीय जैविक-विविधता प्राधिकरण’ स्थापित किया गया – वर्ष 2003, चैन्नई (तमिलनाडु) में
- राष्ट्रीय जैव-विविधता प्राधिकरण भारत में कृषि संरक्षण में सहायकहै, यह – जैव चोरी को रोकता है तथा देशी और परंपरागत आनुवंशिक संसाधनों का संरक्षण करता है, एन.बी.ए. की अनुशंसा के बिना आनुवंशिक/जैविक संसाधनोंसे संबंधित बौद्धिकसंपदा अधिकार हेतु आवेदन नहीं किया जा सकता है।
- सीवकथोर्न के विश्वव्यापी मार्केट की बड़ी सम्भावनाएं हैं। इस पेड़ के बेर में विटामिन और पोषक तत्व प्रचुर होते हैं। चंगेज खां ने इसका प्रयोग अपनी सेना की ऊर्जस्विता को उन्नत करने के लिए किया था। रूसी कॉस्मोनाटों ने इसकेतेल को कास्मिक विकिरण से बचाव के लिए किया था। भारत में यह पौधा पाया जाता है –लद्दाख में
- भारत सरकार ‘सीबकथोर्न’की खेती को प्रोत्साहित कर रही है। इस पादप का महत्व है –यह मृदा-क्षरण के नियंत्रण में सहायक है और मरुस्थलीकरण को रोकता है। इसमें पोषकीय मान होता है और यह उच्च तुंगता वाले ठंडे क्षेत्रों में जीवित रहने के लिए भली-भांति अनुकूलित होता है।
- भारत में लेह बेरी के नाम से लोकप्रिय एक पर्णपाती झाड़ी है – सीबकथोर्न
- पिछले दस वर्षों में बिद्धों की संख्या में एकाएक बिरावट आई है। इसके लिए उत्तरदायी कारण एक साधारण सी दर्द निवारक दवा है, जिसका उपयोग किसानों द्वारा पशुओं के लिए दर्द निवारक के रूप में एवं बुखार के इलाज में किया जाता ह। वह दवा है – डिक्लाफिनेक सोडियम
- भारत में गिद्धों की कमी का अत्यधिक प्रमुख कारण है – जानवरों को दर्द निवारक देना
- कुछ वर्ष पहले तक गिद्ध भारतीय देहातों में आमतौर से दिखाई देते थे, किंतु आजकलकभी-कभार ही नजर आते हैं। इस स्थिति के लिए उत्तरदायी है – गोपशु मालिकों द्वारा रुग्ण पशुओं के लिए उपचार हेतु प्रयुक्त एक औषधि
- मॉरीशस में एक वृक्ष प्रजाति प्रजनन में असफल रही, क्योंकि एक फल खाने वाला पक्षी विलुप्त हो गया, वह पक्षी था – डोडा
- मॉरीशस में टम्बलाकोक (Tambalacoque), जिसे डोडा वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है, प्रजनन में असफल रहा, जिसकी वजह से यह लगभग विलुप्त हो रहा है। इसका मुख्य कारण है – डोडो पक्षी की विलुप्ति
- भारतीय वन्य जीवन के सन्दर्भ में उड्उयन वल्गुल (फ्लाइंग फॉक्स) है – चमगादड़
- ‘ग्रेटर इंडियन फ्रूट बैट’ (Greater Indian Fruit Bat) के नाम से भी जाना जाता है – इंडियन फ्लाइंग फॉक्स
- डुगोन्ग नामक समुद्री जीव जो कि विलोपन की कगार पर है वह है एक – स्तरधारी (मैमल)
- भारत में पाये जाने वाले स्तनधारी ‘ड्यूगोंग’ के संदर्भ में सही है/हैं – यह एक शाकाहारी समुद्री जानवर है, इसे वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची । के अधीन विधिक संरक्षण दिया गया है।
- यह एक समुद्रीस्तनधारी है और घास खाने की इनकी आदत के कारण इन्हें ‘समुद्री गाय’ भी कहा जाता है – ड्यूगोंग
- जिन तीन मानकों के आधार पर पश्चिमी घाट-श्रीलंका एवं इंडो-बर्मा क्षेत्रों को जैव-विविधता के प्रखर स्थलों (हॉटस्पॉट्स) के रूप में मान्यता प्राप्त हुई है, वे हैं – जाति बहुतायता (स्पीशीज़ रिचनेस) स्थानिकता तथा आशंका बोध
- ‘बर्डलाइफ इंटरनेशनल’ (BirdLife International) नामक संगठन के संदर्भ में कथन सही है – यह संरक्षण संगठनों की विश्वव्यापी भागीदारी है, यह ‘महत्वपूर्ण पक्षी एवं जैवविविधता क्षेत्र'(इम्पॉर्टैन्ट बर्ड एवं बॉयोडाइवर्सिटि एरियाज़)’ के रूप में ज्ञात/निर्दिष्ट स्थलों की पहचान करता है।
- जैव-विविधता हॉटस्पॉट की संकल्पता दी गई थी – ब्रिटिश पर्यावरणविद् नॉर्मन मायर्स द्वारा
- जैव-सुरक्षा पर कार्टाजेना उपसंधि (प्रोटोकॉल) के पक्षकारों की प्रथम बैठक (MOP) 23-27 फरवरी, 2004 के मध्य सम्पन्न हुई थी – मलेशिया की राजधानी क्वालालम्पुर में
- भारत ने जैव-सुरक्षा उपसंधि (प्रोटोकॉल)/जैव-विविधता पर समझौते पर हस्ताक्षर किया था। – 23 जनवरी, 2001 को
- जैव-सुरक्षा उपसंधि (प्रोटोकॉल) संबद्ध है – आनुवंशिक रूपांतरित जीवों से
- जैव-सुरक्षा उपसंधि/जैव-विविधता पर समझौते का सदस्य नहीं है – संयुक्त राज्य अमेरिका
- जैव-सुरक्षा (बायो-सेफ्टी) का कार्टाजेना प्रोटोकॉल कार्यान्वित करता है – पर्यावरणएवं वन मंत्रालय
- बलुई और लवणीय क्षेत्रएक भारतीय पशु जाति का प्राकृतिक आवास है। उस क्षेत्र में उस पशु के कोई परभक्षी नहीं है किंतु आवास ध्वंस होने के कारण उसका अस्तित्व खतरे में है। यह पशु है – भारतीय वन्य गधा
- जैव-विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनके दलों का दसवां सम्मेलन आयोजित किया गया था – नगोया में
- जैव-विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दलों का ग्यारहवां सम्मेलन (CoP-11) 8-11 October 2012 के मध्य आयोजित किया गया – हैदराबाद, भारत में
- UN-REDD+ प्रोग्राम की समुचित अभिकल्पना और प्रभावी कार्यान्वयन महत्वपूर्ण रूप से योगदान दे सकते हैं – जैव-विविधता का संरक्षण करने में वन्य पारिस्थितिकी की समुत्थानशीलता में तथा गरीबी कम करने में
- दो महत्वपूर्ण नदियां जिनमेंसे एक का स्रोत झारखंड में है (और जो उड़ीसा में दूसरे नाम से जानी जाती है) तथा दूसरी जिसका स्रोत उड़ीसा में है – समुद्र में प्रवाह करनेसे पूर्व एक ऐसे स्थान पर संगम करती हैं, जो बंगाल की खाड़ी से कुछ ही दूर है। यह वन्य जीवन तथा जैव-विविधता का प्रमुख स्थल है और सुरक्षित क्षेत्र है। वह स्थल है – भितरकनिका
- प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय संघ (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्जर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज़) (IUCN) तथा वन्य प्राणिजात एवं वनस्पतिजात की संकटापन्न स्पीशीज़ के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एन्डेंजर्ड स्पीशीज़ ऑफ वाइल्ड फॉना एंड फ्लोरा) (CITES) के संदर्भ में सही है – IUCN, प्राकृतिक पर्यावरण के बेहतर पर्यावरण के बेहतर प्रबंधन के लिए, विश्व भर में हजारों क्षेत्र-परियोजनाएं चलाता है। CITES उन राज्यों पर वैध रूप से आबद्धकर है जो इसमें शामिल हुए हैं,लेकिन यह कन्वेंशन राष्ट्रीय विधियों का स्थान नहीं लेता है।
- IUCN, एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो प्रकृति संरक्षण एवं प्राकृतिक संसाधनों के सतत प्रयोग के क्षेत्र में कार्यरत है। यह अंग नहीं है – संयुक्त राष्ट्र का
- ‘पारितंत्र एवं जैव-विविधता का अर्थतंत्र’ (The Economics of Ecosystems and Biodiversity-TEEB) नामक पहल के संदर्भ में सही है/हैं – यह एक विश्वव्यापी पहल है, जो जैव-विविधता के आर्थिक लाभों के प्रति ध्यान आकषित करने पर केंद्रित है। यह ऐसा उपागम प्रस्तुत करता है, जो पारितंत्रों और जैव-विविधता के मूल्य की पहचान, निदर्शन और अभिग्रहण में निर्णयकर्ताओं की सहायता कर सकता है।
- TEEB, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme) के अंतर्गत कार्य करने वाली संस्था है। इसका कार्यालय है – जेनेवा, स्विट्जरलैंड में
- सिंह-पुच्छी वानर (मॅकाक) अपने प्राकृतिक आवास में पाया जाता है – तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक में
- भारत में प्राकृतिक रूप में पाए जाते हैं – काली गर्दन वाला सारस (कृष्णग्रीव सारस), उड़न गिलहरी (कंदली), हिम तेंदुआ
- चीता को भारत से विलुप्त घोषित किया गया था – वर्ष 1952 में
- समुद्र तल से 3000-4500 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है – हिम तेंदुआ
- जम्मू एवं कश्मीर का राज्य पक्षी है – काली गर्दन वाला सारस
- भारत में सर्वाधिक उड़न गिलहरी हैं – हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में
- शीतनिष्क्रियता की परिघटना का प्रेक्षिण कियाजा सकता है – चमगादड़, भालू कृंतक (रोडेन्ट) में
- समशीतोष्ण (Temperate) और शीतप्रधान देशों में रहने वाले जीवों की उस निष्क्रिय तथा अवसन्न अवस्था को जिसमें वहां के अनेक प्राणी जाड़े की ऋतु बिताते हैं। कहते हैं – शीतनिष्क्रियता(Hybernation)
- गिलहरियां (Squirrels), छदूंदर (Must Rats), चूहे (Rats), मूषक (Mice) आदि स्तनधारी प्राणी आते हैं – कृंतक (Rodents) गण में
- उच्चतर अक्षांशों की तुलना में जैव-विविधतासामान्यत- अधिक होती है – निम्नतर अक्षांशों में
- पर्वतीय प्रवणताओं (ग्रेडिएन्ट्स) में उच्चतर उन्नतांशों की तुलना में जैव-विविधता सामान्यत: अधिक होती है – निम्नतर अक्षांशों में