Kavya Sastra||पाश्चात्य काव्यशास्त्र||
पाश्चात्य काव्यशास्त्र
पाश्चात्य काव्य चिन्तन की परम्परा का विकास 5वीं सदी ईस्वी पूर्व से माना जाता है।पाश्चात्य काव्य चिन्तन की परम्परा में 5वीं सदी ईस्वी के पूर्व हेसियड, सोलन, पिंडार, नाटककार एरिस्तोफेनिस आदि की रचनाओं में साहित्यिक सिद्धान्तों का उल्लेख मिलता है।एक व्यवस्थित शास्त्र के रूप में पाश्चात्य साहित्यालोचन की पहली झलक प्लेटो (427-347 ई० पू०) के ‘इओन’ नामक संवाद में मिलती है।
प्लेटो का संक्षिप्त जीवनवृत्त निम्नांकित है-
जन्म-मृत्यु | जन्म स्थान | मूलनाम | गुरुप्रदत्त नाम | अरबी फारसी नाम | अंग्रेजी नाम |
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427-347 | एथेन्स | अरिस्तोक्लीस | प्लातोन | अफ़लातून | प्लेटो |
प्लेटो प्रत्ययवादी या आत्मवादी दार्शनिक था। इसके दर्शन के मुख्य विषय निम्नलिखित है-
(1) प्रत्यय-सिद्धान्त;
(2) आदर्श-राज्य;
(3) आत्मा की अमरत्व सिद्धि;
(4) सृष्टि-शास्त्र;
(5) ज्ञान-मीमांसा।प्लेटो के प्रत्यय सिद्धान्त के अनुसार, ‘प्रत्यय या विचार (Idea) ही चरम सत्य है, वह शाश्वत और अखण्ड है तथा ईश्वर उसका स्त्रष्टा (Creator) है। यह वस्तु जगत प्रत्यय का अनुकरण है तथा कला जगत वस्तु जगत का अनुकरण है। इस प्रकार कला जगत अनुकरण का अनुकरण होने से सत्य से तीन गुना दूर है; क्योंकि अनुकरण असत्य होता है। अर्थात-
विचार या प्रत्यय …अनुकरण …. वस्तु जगत….अनुकरण …. कला जगतप्लेटो ने यूनानी शब्द ‘मिमेसिस’ (Mimesis) अर्थात ‘अनुकरण’ का प्रयोग अपकर्षी (Derogatory) अर्थ में किया है, उनके अनुसार अनुकरण में मिथ्यात्व रहता है, जो हेय है।कला की अनुकरण मूलकता की उद्भावना का श्रेय प्लेटो को दिया जाता है।वास्तव में, प्लेटो ने अनुकरण में मिथ्यात्व का आरोप लगाकर कलागत सृजनशीलता की अवहेलना की।प्लेटो आदर्श राज्य से कवि या साहित्यकार के निष्कासन की वकालत करता है क्योंकि कवि सत्य के अनुकरण का अनुकरण करता है, जो सत्य से त्रिधा अपेत (Three Removed) है।प्लेटो की महत्वपूर्ण रचनाएँ निम्नलिखित है-
(1) इओन (Ion), (2) क्रातिलुस (Cratylus) (3) गोर्गिआस (Gorgias) (4) फेद्रुस (Phaedrus) (5) फिलेबुस (Philebus) (6) विचार गोष्ठी (Symbosium) (7) गणतन्त्र (Republic) (8) लॉज।प्लेटो ने अपने ‘इओन’ नामक संवाद में काव्य-सृजन प्रक्रिया या काव्य हेतु की चर्चा की है। इसने ईश्वरीय उन्माद को काव्य हेतु स्वीकार किया है।प्लेटो के अनुसार कवि काव्य-सृजन दैवी शक्तियों से प्रेरित होकर करता है। काव्य देवी को प्लेटो ने ‘म्यूजेज’ संज्ञा से अभिहित किया है।
प्लेटो ने काव्य के तीन प्रमुख भेद स्वीकार किये हैं-
(1) अनुकरणात्मक प्रहसन और दुःखान्तक (नाटक)
(2) वर्णानात्मक डिथिरैंब (प्रगति)
(3) मिश्र महाकाव्यप्लेटो ने कला को अग्राह्य माना है, जिसके दो आधार हैं-
(1) दर्शन और (2) प्रयोजन।कला के मूल्य के संदर्भ में प्लेटो का दृष्टिकोण उपयोगितावादी और नैतिकतावादी था।प्लेटो का कला विषयक दृष्टिकोण विधेयात्मक या मानकीय (Normative) है, अर्थात प्लेटो बताना चाहते है कि कला कैसी होनी चाहिए।प्लेटो स्वयं एक कवि था। इसकी कविताएँ ‘आक्सफोर्ड बुक ऑफ ग्रीक वर्स’ से संकलित है।प्लेटो ने ‘रिपब्लिक’ में लिखा है, ”दासता मृत्यु से भी भयावह है।”अरस्तू का मूल यूनानी नाम ‘अरिस्तोतिलेस’ (Aristotiles) था।
अरस्तू का संक्षिप्त जीवन वृत्त निम्नांकित हैं-
जन्म-मृत्यु | जन्म स्थान | पत्नी | शिष्य था | गुरु था |
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384-322 ई० पू० | मकदूनिया | वीथियास | प्लेटो का | सिकन्दर का |
अरस्तू ने पूर्ण ज्ञान की परिभाषा दी थी, ”ज्ञान की सभी शाखाओं में अबाध गति।”अरस्तू के ग्रन्थों की संख्या चार सौ बतायी जाती है, जिनमें सर्वप्रमुख तीन हैं-
(1) पेरिपोइएतिकेस (काव्य शास्त्र)- काव्य के मौलिक सिद्धान्तों का विवेचन।
(2) तेखनेस रितोरिकेस (भाषा शास्त्र)- भाषण, भाषा एवं भावों का वर्णन।
(3) वसीयतनामा- दास-प्रथा से मुक्ति का प्रथम घोषणा पत्र।अरस्तू कृत ‘वसीयतनामा’ को इतिहास में दास-प्रथा से मुक्ति का प्रथम घोषणा पत्र माना जाता है, क्योंकि ‘वसीयतनामा’ के द्वारा उन्होंने अपने सभी दासों को दासता से मुक्त कर दिया था।अरस्तू ने ‘पेरिपोइएतिकेस’ की रचना अनुमानत: 330 ई० पू० के आस-पास की। इस कृति का संक्षिप्त परिचय निम्न है-
यूनानी नाम (मूल) | अध्याय व पृष्ठ | प्रथम अंग्रेजी अनुवादक व अनुवाद |
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पेरिपोइएतिकेस | छब्बीस व पचास | टी० विन्स्टैन्ली- आन-पोएटिक्स (1780) |
अरस्तू ने किसी वस्तु को ठीक से समझने के लिए, घड़ा निर्माण की प्रक्रिया के उदाहरण द्वारा, चार बातों पर ध्यान देना आवश्यक बताया है, जिसे निम्न ढंग से दर्शाया जा सकता है-
प्रयोजन……… उपादानकरण ………निमित्तकरण ………तत्व
जल …………..मिट्टी………………कुम्हार या चाक …….घड़ाअरस्तू के ‘काव्यशास्त्र’ में अध्यायानुसार निरूपित विषयों की तालिका इस प्रकार है।
अध्याय | विषय |
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1.5 | अनुकरणात्मक काव्य के रूप में त्रासदी (टैजेडी), महाकाव्य (एपिक) तथा प्रहसन (कॉंमेडी) का विवेचन तथा माध्यम, विषय एवं पद्धति के आधार पर इनका पारस्परिक भेद। |
6-19 | यह ग्रन्थ का केन्द्रीय भाग है। इसमें त्रासदी का सविस्तार विवेचन तथा इसकी परिभाषा, संरचना, प्रभाव आदि का वर्णन है। |
20 | पद-विभाग आदि का व्याकरणिक विवेचन। |
21-22 | पदावली और लक्षणा का निरूपण। |
23-24 | महाकाव्य के स्वरूप का विवेचन |
25 | प्लेटो या अन्य लोगों द्वारा काव्य पर किये गए आक्षेपों का निराकरण |
26 | महाकाव्य और त्रासदी की तुलनात्मक मूल्यांकन |
अरस्तू कृत ‘काव्यशास्त्र’ में अध्याय संख्या 12 और 20 प्रक्षिप्त माने जाते हैं।अरस्तू ने ‘काव्य-शास्त्र’ की रचना दो दृष्टियों से की है-
(1) यूनानी काव्य का वस्तुगत विवेचन व विश्लेषण;
(2) प्लेटो के द्वारा काव्य पर लगाये गए आक्षेपों का समाधान।अरस्तू ने महाकाव्य, दुखान्तक प्रहसन आदि को अनुकरण का भेद माना है।अरस्तू काव्य के लिये छन्द को अनिवार्य नहीं मानते थे।महाकाव्य, दुखान्तक, प्रहसन आदि कलाओं के तीन भेदक तत्व है- (1) माध्यम (2) विषय और (3) पद्धति।दुखान्तक (Tragedy) के छह अंग हैं, जो निम्न हैं-
(1) कथानक (Plot) (2) चरित्र (Character) (3) विचार (Thought) (4) पदयोजना (Diction (5) गीत (Song) (6) दृश्य (Spectacle)।अरस्तू ने काव्य दोषों के पाँच आधार माने हैं-
(1) असम्भव वर्णन- जो मन को अग्राह्य हो,
(2) अयुक्त वर्णन- जिसमें कार्य-कारण भाव का अभाव हो,
(3) अनैतिक वर्ण – जिसमें स्वीकृत मूल्यों की अपेक्षा हो,
(4) विरुद्ध वर्णन- जहाँ दो विरोधी वस्तुओं का वर्णन हो,
(5) शिल्पगत दोष- कला सम्बन्धी भूल।अरस्तु के ‘काव्यशास्त्र’ में आए कुछ प्रमुख यूनानी शब्द निम्न हैं-
यूनानी शब्द | हिन्दी अनु० | अंग्रेजी अनु० |
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पेरिपेतेइआ (Peripeteia) | स्थिति-विपर्यय | Reversal of the situation |
अनग्नोरिसिस (Anagnorisis) | अभिज्ञान | Recognition |
मिमेसिस (Mimesis) | अनुकरण | Imitation |
कथार्सिस (Katharsis) | विरेचन | |
माइथास (Maithos) | कथावस्तु | Plat |
एथोस (Ethos) | चरित्र | Character |
पाथोस (Pathos) | भाव | Emotion |
प्राक्सिस (Praxis) | कार्यव्यापार | Action |